‘ नर समान नहिं कवनिउ देही । | जीव चराचर जाचत जेही ॥ । अर्थात् मनुष्य - शरीर के समान कोई भी शरीर नहीं है , जिसको जड़ - चेतन सभी चाहते हैं । ‘ जीव चराचर ' - चलनेवाले , नहीं चलनेवाले जितने प्राणी हैं , सभी मनुष्य - शरीर चाहते हैं । मनुष्य , पक्षी चलनेवाले हैं और वृक्ष , पहाड़ चलनेवाले नहीं हैं । सभी चाहते हैं कि मनुष्य - शरीर मिले ।