संत ही भारतवर्ष के स्मृतिकार हैं , संत ही उसके कवि हैं , संत ही उसके संदेशवाहक है । और संत ही उसकी संतान को प्रेम , ज्ञान और शांति का पाठ पढ़ानेवाले है . . . . . . संत ही मानव जाति के प्राण हैं , संत ही संसार - रूपी पादप के अमृत फल हैं , संत ही सभ्य समाज को प्रकाश देनेवाले प्रदीप हैं । वहीं पाप - ताप से पीड़ित मानव जाति को ऊपर उठानेवाली शक्ति है । ' ' | ऐसे संतों का जीवन परम पावन और ईश्वर - भक्ति के द्वारा लोक - मंगल के लिए समर्पित होता है । सत्य तत्त्व में अहर्निश तल्लीन उनका आचरण , व्यवहार सब सत् - मय हुआ करते हैं । उनकी गति । साधारण बुद्धि की पहुँच से दूर छिपी होती है | ‘ दादू जाने न कोई , संतन्ह की गति गोई । । युगपुरुष परमाराध्य अनन्त श्री - विभूषित सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज इस युग के ऐसे संत हैं । पृष्ठ 212, मूल्य ₹60 प्लस डाक खर्च।