इस संकटापन्न परिस्थिति में सभी धर्मों के समतामूलक भावों अर्थात् आध्यात्मिक पक्ष को जनसामान्य के बीच लाना आवश्यक प्रतीत होता है । इसी उपाय के द्वारा धर्मों के बीच चौड़ी होती खाई को पाटा जा सकता है और धर्म के शांति - मुक्ति प्रदायक स्वरूप को पुनर्प्रतिष्ठित किया जा सकता है । प्रस्तुत पुस्तक ‘ सर्वधर्म समन्वय' इसी दिशा में किया गया एक लघु प्रयास है ।